Wednesday, 8 June 2016

8 JUNE 1915 GEETA RAHASYA PUBLISHED_LOKMANYA TILAK


बाल गंगाधर तिलक द्वारा व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से की गई गीता की सरल और स्पष्ट व्याख्या


गीता रहस्य भगवान श्री कृष्ण के निष्काम कर्मयोग के विशाल उपवन से चुने हुए आध्यात्मिक सत्यों के सुन्दर गुणों का एक गुच्छा है। इस गुच्छे की व्याख्या विभिन्न महापुरुषों द्वारा समय-समय पर की गई है किंतु इसकी जितनी सरल और स्पष्ट व्याख्या व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बाल गंगाधर तिलक ने की गई है शायद ही अभी तक किसी अन्य महापुरुष ने की हो। इस ग्रंथ की रचना उन्होंने जेल में की थी।

उन्होंने इस ग्रंथ के माध्यम से बताया कि गीता चिन्तन उन लोगों के लिए नहीं है जो स्वार्थपूर्ण सांसारिक जीवन बिताने के बाद अवकाश के समय खाली बैठ कर पुस्तक पढ़ने लगते हैं और यह संसारी लोगों के लिए कोई प्रारंभिक शिक्षा है। इसमें यह दार्शनिकता निहित है कि हमें मुक्ति की ओर दृष्टि रखते हुए सांसारिक कर्तव्य कैसे करने चाहिए। इस ग्रंथ में उन्होंने मनुष्य को उसके संसार में वास्तविक कर्तव्यों का बोध कराया है।

श्रीमद्भगवद्गीता हमारे धर्मग्रंथों का एक अत्यंत तेजस्वी और निर्मल हीरा है। भक्ति और ज्ञान का मेल कराके इन दोनों का शास्त्रोंक्त व्यवहार के साथ संयोग करा देने वाला और इसके द्वारा संसार से त्रस्त मनुष्य को शांति देकर उसे निष्काम कर्तव्य के आचरण में लगानेवाला गीता के समान बालबोध ग्रंथ, समस्त संसार के साहित्य में भी नहीं मिल सकता। केवल काव्य की ही दृष्टि से यदि इसकी परीक्षा की जाए तो भी यह ग्रंथ उत्तम काव्यों में गिना जा सकता है; क्योंकि इसमें आत्मज्ञान के अनेक गूढ़ सिद्धांत ऐसी प्रासादिक भाषा में लिखे गए हैं, इसमें ज्ञानयुक्त भक्तिरस भी भरा पड़ा है। जिस ग्रंथ में समस्त वैदिक धर्म का सार स्वयं श्रीकृष्ण भगवान् की वाणी से संगृहित किया है उसकी योग्यता का वर्णन कैसे किया जाए ?

भारतीय आध्यात्मिकता का सुमधुर फल


‘‘प्रत्यक्ष अनुभव से यह स्पष्ट दिखाई देता है, कि श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान युग में भी उतनी ही नव्यतापूर्ण एवं स्फूर्तिदात्री है, जितनी की महाभारत में समाविष्ट होते समय भी। गीता के संदेश का प्रभाव केवल दार्शनिक अथवा विद्वत्वर्चा का विषय नहीं है, अपितु आचार-विचारों के क्षेत्र में भी वह सदैव जीता-जागता प्रतीत होता है। एक राष्ट्र तथा संस्कृति का पुनरुज्जीवन, गीता का उपदेश, करता रहा है। संसार के अत्युच्च शास्त्रविषयक ग्रंथों में गीता का अविरोध से समावेश हुआ है। गीता-ग्रंथ पर स्वर्गीय लोकमान्य तिलक जी की यह व्याख्या निरी मल्लीनाथी व्याख्या नहीं है, वह एक स्वतंत्र प्रबंध है और उसमें नैतिक सत्य का उचित निरूपण भी है। अपनी सूक्ष्म और व्यापक विचार प्रणाली तथा प्रभावोत्पादक लेखन शैली के कारण मराठी भाषा की पहली श्रेणी का यह पहला प्रचंड गद्य अभिजात वाङ्मय में समाविष्ट हुआ है। इस एक ही ग्रंथ से सिद्ध होता है, कि यदि तिलक जी चाहते, तो मराठी साहित्य और नीतिशास्त्र के इतिहास में एक अनोखा स्थान पा सकते थे। किंतु विधाता ने उनकी महत्ता के लिए वाङ्मय-क्षेत्र नहीं रखा था, इसलिए केवल मनोरंजनार्थ उन्होंने अनुसंधान का महान् कार्य किया। यह घटना अर्थपूर्ण है, कि उनकी कीर्ति अजरामर करने वाले उनके अनुसंधान-ग्रंथ, उनके जीवित कार्यों से विवशतापूर्ण लिए गए विश्रांति-काल में निर्मित हुए हैं। स्वर्गीय तिलक जी की प्रतिभा के ये गौण आविष्कार भी इस हेतु से संबद्ध हैं, कि इस राष्ट्र का महान भवितव्य उसके उज्जवल गतेतिहास के योग्य हो। गीता रहस्य का विषय जो गीता-ग्रंथ है, वह भारतीय आध्यात्मिकता का परिपक्व सुमधुर फल है। मानवी श्रम, जीवन और कर्म की महिमा का उपदेश अपनी अधिकारवाणी से देकर, सच्चे अध्यात्म का सनातन संदेश गीता दे रही है, जो कि आधुनिक काल के ध्येयवाद के लिए आवश्यक है।’’

-बाबू अरविंद घोष


अन्य पुस्तकें



Shrimadh Bhagvad Gita Rahasya

From Wikipedia, the free encyclopedia
Shrimadh Bhagvad Gita Rahasya, popularly also known as Gita Rahasya or Karmayog Shashtra, is a 1915 Marathi language book authored by Indian social reformer and independence activist Bal Gangadhar Tilak while he was in prison at Mandalay, Burma. It is the analysis of Karma yoga which finds its source in the Bhagavad Gita, the sacred book for Hindus.[1] According to him, the real message behind the Mahabharata's Gita is to act or perform, which is covered in the initial parts rather than renounce, which is covered in the later parts of the epic Gita.[2] He took the Mimamsa rule of interpretation as the basis of building up his thesis.[3]
This book consists of two parts. The first part is the philosophical exposition and the second part consists of the Gita, its translation and the commentary.
The book was written by Tilak in pencil with his own handwriting while being imprisoned at the Mandalay jail from 1908 to 1914. The more-than-400 pages of script was written in less than four months and is hence in itself considered as "remarkable achievement".[4]Although the writing was completed in the early years of his term, the book was only published in 1915, when he returned to Poona.[5] He defended the ethical obligation to the active principle or action, even violent action including killing, as long as that was selfless and without personal interest or motive.[6]
In a speech on his Gita Rahasya Tilak said "Various commentators have put as many interpretations on the book, and surely the writer or composer could not have written or composed the book for so many interpretations being put on it. He must have but one meaning and one purpose running through the book, and that I have tried to find out". He finds the message of the subservience of all yogas to Karmayoga or the yoga of action rather than the yoga of sole knowledge (jnanayoga) or of devotion (bhaktiyoga).[7]

Books on it[edit]

Various authors have written books based on Tilak's Gita Rahasya and have also translated it into other languages.
  • A Gist of Mr. Tilak's Gita-Rahasya Or Karma-Yoga-Shastra, Etc.[8]
  • Introduction to The Gita-rahasya: Or The Fundamentals of Life and Living[9]

Translations[edit]

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Shrimadh Bhagvad Gita Rahasya
Book by Bal Gangadhar Tilak
Shrimadh Bhagvad Gita Rahasya, popularly also known as Gita Rahasya or Karmayog Shashtra, is a 1915 Marathi language book authored by Indian social reformer and independence activist Bal Gangadhar Tilak while he was in prison at Mandalay, Burma. Wikipedia
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5 comments:

  1. Download popular kahaniya, novels & hindi classical books here. Check hindi books pdf format.

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  4. Marnottar Jeevan by Swami Vivekanand is a second book of the series. Marnottar Jeevan Hindi Book is the Hindi translation of the English writings of Swami Vivekanand Books

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  5. Geetagyan by Dinanath Bhargav is a book which is a brief or you can say a miniature of holy book of Hindus “Bhagvat Gita”.

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